बहुत दिनों से लिखना चाहता कुछ,
बहुत दिनों से कहना चाहता था कुछ,
रोका भी ना था किसी ने लिखने से,
टोका भी ना था किसी ने कहने से ,
परन्तु ...
समय चक्र मे रह गया ...
जाने मै किस दुनिया मे सो गया ....
विषय बहुत थे -
मंच बहुत थे -
दिल भी कहता रहा बहुत कुछ कहने को -
बेचारा मन ! बैचेन होता रहा उड़ने को -
परन्तु ...
पता नहीं मेरी "कलम" को क्या हो गया,
जाने मै किस दुनिया मे सो गया ....
अब उठा हूँ -
सही कहूं , उठाया गया हूँ -
गहरी नींद से अब जागा हूँ -
बीते समय मे बहुत कुछ हारा हूँ -
परन्तु ...
अब लिखूंगा ,
अब बात मंच से कहूँगा -
चलूँगा समय के साथ , अपनी उड़ान अब मै भरूँगा ।
बहुत कुछ है मन मे -
अब दिल की बात इस "कलम" से लिखूंगा ।
नहीं रुकेगी ये कलम अब -
जो कहता है ये मन, अब दिल से वही सपने बुनूँगा ।
सोया था जिस दुनिया मे ,
अब उस दुनिया के लिए कुछ करूंगा ।
अब एक नई -
विचारों की क्रांति लडूंगा ...
विचारों की क्रांति लडूंगा ...